बुंदेली समाज [బొందిలి సమాజ్] [ BONDILI SAMAAJ]
बुंदेली समाज का गठन बुंदेलियों के कल्याण व उन्नति को ध्यान में रखकर समाज की स्थापना की गई। हर महीने के पहला रविवार (1st Sunday of every month) को बैठक का आयोजन किया जाता है । बैठक में समाज के बंधुओं द्वारा दिये गए सुझावों को अपनाते हुए विभिन्न कार्यक्रमों एवं निर्णय लिए जाते हैं।
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2015
बुंदेली समाज బొందిలి సమాజ్ BONDILI SAMAAJ
बुंदेली
समाज को बलवती बनाने के लिए हर एक सदस्य का योगदान अनिवार्य है। समाज व
समाज के जरूरतमन्द सदस्यों के विकास के लिए व अपने अधिकारों की सुरक्षा के
लिए एकजुट होना ज़रूरी है ।
संगठन ही शक्ति है ।
बिना संगठन के समाज व सदस्यों की उन्नति, प्रगति व उत्थान ही नगण्य है।
समाजोत्थान का आधार व बुनियाद संगठन मात्र है ।
एकता के बिना समाज का कोई अस्थित्व ही नहीं है ।
संगठन ही शक्ति है ।
बिना संगठन के समाज व सदस्यों की उन्नति, प्रगति व उत्थान ही नगण्य है।
समाजोत्थान का आधार व बुनियाद संगठन मात्र है ।
एकता के बिना समाज का कोई अस्थित्व ही नहीं है ।
गुरुवार, 28 मई 2015
बुंदेली समाज [బొందిలి సమాజ్] [ BONDILI SAMAAJ ]
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जहां तक बुन्देली शब्द का शाब्दिक अर्थ स्पष्ट ही है कि बुंदेलखंड क्षेत्र से भारत के अनेक प्रान्तों में सिपाही या अन्य व्यवसाय से जुड़े या सिपाही के रूप में अनेक[धर्मों ] वर्ण के अधिक संख्या में लोगों ने अपनी सेवाएँ प्रदान कीं । संबन्धित प्रान्तों के क्षेत्रीय भाषाओं के उच्चारण के प्रभाव से कई प्रान्तों में इन अन्तर्देशीय प्रवासी उत्तरभारतियों को दक्षिण भारत में बोंदिली के नाम से जाना जाता है । दक्षिण में राजपूत , ब्राहमण {कन्नोजी या कान्यकुब्ज } , के कई परिवार बोंदिली के नाम से जाने जाते हैं । अपने मूलस्थान से अलग होने के कारण कालांतर में राजपूत व कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवारों में निकटता बढ़ती चली गई धीरे धीरे इन परिवारों में रिश्तेदारी भी बनती गई अब स्थिति यहाँ तक पहुँच गई कि आपस में शादी ब्याह रचाने के कारण दोनों वर्ण के लोग एक होते हुए भी या कहें रिश्तेदारी निभाते हुए अपनी परंपरा ,रहनसहन ,खानपान ,रीतिरिवाज आदि को बनाए रखे हुए हैं । 16 वीं शताब्दि
से अपने मूल या पैतृकस्थान से दूर होकर भी ,अपने ब्राह्मण धर्म और रीति रिवाजों से बंधे रहकर दक्षिण भारत में अपने अस्तित्व को बनाए रखते हुए बोंदिली ब्राह्मण के रूप में प्रसिद्ध हैं ।
जय शंकर प्रसाद तिवारी, गांधीनगर बापुघाट, लंगरहौज़ हैदराबाद, आंध्रप्रदेश ।
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