गुरुवार, 21 जनवरी 2016

बुंदेली समाज బొందిలి సమాజ్   BONDILI SAMAAJ

1400 साल पहले...करीब 200 साल तक, 20 पीढ़ियों द्वारा पहाड़ को ऊपर सेनीचे की तरफ तराश कर बनाया गया यह..." कैलाश मंदिर "ताजमहल से लाख गुना सुँदर और आकर्षक है... !!भारतीय शिल्प कला का अद्भुत नमूना है यह... !!संपूर्ण हिन्दू पौराणिक कथाओं का शिल्प है...!!विष्णु अवतार , महादेव से लेकर रामायण एवं महाभारत कोभी... मूर्तियों के रूप में दर्शाया गया है... !!और वो भी आज से 1400 साल पहले ...!पर अफ़सोस,देश इसके बारे में कहाँ जानता है!वाकई यह दुनियाँ की सबसे श्रेष्ठ वास्तु है।अद्भुत, बेमिशाल...!!कैलाश मंदिर , वेरुळ लेणीसँभाजीनगर , महाराष्ट्र ।




बुंदेली समाज బొందిలి సమాజ్   BONDILI SAMAAJ

सिर्फ ५० रुपये में गले के कैंसर से पीड़ित लोगो को ठीक 

कर रहे है बंगलूरू के डॉ. राव !


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गले के कैंसर से पीड़ित, कोलकता का एक मरीज, पिछले २ महीने से कुछ खा नहीं पा रहा था। वो निराश था, कुछ बोलता नहीं था और उसे नाक में लगे एक पाइप से खाना पड़ रहा था। गरीब होने की वजह से वो अच्छी मेडीकल ट्रीटमेंट नहीं ले सकता था। उसके डॉक्टर ने उसे बंगलुरु के एक सर्जन के बारे में बताया। वो बंगलुरु गया, डॉक्टर से मिला और ट्रीटमेंट शुरू की। सिर्फ ५ मिनट के ट्रीटमेंट के बाद वो बोल पा रहा था, खाना खा रहा था और उसके बाद वो अपने घर जाने के लिये तैयार था। ये सब मुमकिन हुआ डॉ. विशाल राव की वजह से!
३७ वर्षीय डॉक्टर राव  ने बताया –
“उस दिन ३ घंटे के ऑपरेशन के बाद जब मैं ऑपरेशन थियटर से बाहर आया, तब मैंने देखा कि कोलकता का वो मरीज मेरी राह देख रहा था। जैसे ही उसने मुझे देखा, वह दौड़ता हुआ आया और मुझसे लिपट गया और अपनी आवाज वापस पाने की ख़ुशी में मुझे धन्यवाद देने लगा।”
डॉ. राव एक ओंकोलोजिस्ट है और बंगलूरू में हेल्थ केयर ग्लोबल (HCG) कैंसर सेंटर में सर और गले की बीमारियों के सर्जन है।

आम तौर पर मिलने वाले गले के प्रोस्थेसीस की किमत १५००० रुपये से लेकर ३०००० रुपये होती है और उन्हें हर ६ महीने के बाद बदलना पड़ता है। लेकीन डॉ. राव के प्रोस्थेसीस की किमत सिर्फ ५० रुपये है।

throat cancer patients
डॉ. विशाल राव

वोइस प्रोस्थेसीस (Voice prosthesis ) उपकरण सिलिकॉन से बना है। जब मरीज का पूरा वोइस बॉक्स या कंठनली (larynx) निकाला जाता है तब ये यंत्र उन्हें बोलने में मदत करता है। सर्जरी के दौरान या उसके बाद विंड-पाइप और फ़ूड- पाइप को अलग करके थोड़ी जगह बनायी जाती है। ये यंत्र तब वहा बिठाया जाता है। डॉ. राव ने समझाया कि फेफड़ो से आनेवाली हवा से वौइस् बॉक्स में तरंगे उत्सर्जित होती है। प्रोस्थेसीस की मदत से फ़ूड पाइप में कंपन (वाइब्रेशन) पैदा होती है जिससे बोलने में मदद मिलती है।
डॉ. राव कहते है-
“अगर आप फ़ूड-पाइप की मदत से फेफड़ो में हवा (ऑक्सीजन) भर दे, तो वहां कंपन और आवाज पैदा करके, दिमाग उसे संदेश में परिवर्तित करता है। यंत्र एक साइड से बंद होता है जिससे अन्न या पानी फेफडे में नहीं फैलता। यह यंत्र २.५ सेमी लम्बा है और इसका वजन २५ ग्राम है।”

२ साल पहले AUM वोइस प्रोस्थेसीस फाउंडेशन का निर्माण तब किया गया जब कर्नाटक से एक मरीज डॉ. राव से मिलने आया।

throat cancer patients
प्रोस्थेसीस का फ्रंट व्यूह
डॉ. राव याद करते है –
“उस आदमी ने एक महीने से कुछ खाया नहीं था और वो ठीक तरह से बोल भी नहीं पा रहा था। सर्जरी के बाद उसके गले से वोइस बॉक्स निकाल दिया गया था। और उसके लिए प्रोस्थेसीस का खर्चा उठाना मुश्किल था। वो जब मुझसे मिलने आया तब परेशान था और जिंदगी से हार चूका था।”
डॉ. राव ने उसे मदद करने का वादा किया।
पहले जब भी डॉ. राव के पास ऐसे मरीज आते थे, वो दवाईयो की दूकान में जाकर डिस्काउंट मांगते थे, पैसे इकठ्ठा करते थे और फिर मरीजों को दान कर देते थे। पर इस कर्नाटक के मरीज के एक दोस्त, शशांक महेस ने डॉ. राव से कहा कि पैसो का इंतज़ाम वो खुद कर लेंगे और साथ में उनसे एक गंभीर सवाल पूछा –

“आप इन सब लोगो पर निर्भर क्यूँ है? आप खुद ऐसे मरीजो के लिये कोई इलाज या कोई यंत्र क्यों नहीं बनाते?”

throat cancer patients
डॉ. राव को पता था कि ये उनकी क्षमता के परे है। उन्हें इसके लिये एक यंत्र का निर्माण करना था, जिसकी कल्पना उन्हें थी पर उसे बनाने के लिये तंत्रीय ज्ञान उन्हें नहीं था। पर शशांक एक उद्योगपति था और जो कौशल डॉ. राव के पास नहीं था वह उसमे था।  डॉ. राव ने सारा टेक्निकल प्लान तैयार किया और शशांक ने उसे हकीकत में तब्दील किया। शशांक ने डॉ. राव की मदद करने का आग्रह किया। और दोनों ने अपनी समझ, मेहनत और पैसो की पूंजी लगाके इस यंत्र का आविष्कार किया।
डॉ. राव कहते है –
”गरीबो को फटे-पुराने कपडे दान में देना मुझे कभी पसंद नहीं था, क्यूंकि गरीब होने के बावजूद वे इससे ज्यादा के हकदार है। इसी तरह सिर्फ इसलिए कि मेरे मरीज़ गरीब है, मैं उनके लिए निचले स्तर का कोई यंत्र का निर्माण नहीं करना चाहता था। आखिर वो भी मरीज़ है, उन्हें भी बेहतरीन इलाज करवाने का हक़ है। इसलिए हमने इस यंत्र को बनाने के लिए सबसे बेहतरीन मटेरियल का इस्तेमाल किया ”
डॉ. राव और शशांक ने इस यंत्र को पेटेंट करने के की अर्जी दी है। यह यंत्र बाज़ार में अगले महीने से उपलब्ध हो जायेगा। HCG के साइंटिफिक तथा  एथिकल कमिटी ने भी इसे मरीजो के लिये इस्तेमाल करने के लिये स्वीकृति दे दी है। शुरुआत में जांच के उपलक्ष्य से इस यंत्र को ३० मरीजो को इस्तेमाल करने दिया जायेगा।
वोइस प्रोस्थेसिस महंगा होता है, क्योंकि वो विदेश से ख़रीदा जाता है। इस यंत्र को बनाने के लिये डॉ. राव और शशांक को करीब दो साल लगे। इसकी क़ीमत बहुत ही कम रखी गयी ताकि गरीब मरीज भी इसे इस्तेमाल कर सके।
वे कहते है-
”हमारा मानना है कि अपनी आवाज़ पर हर किसीका अधिकार है। हम किसी मरीज़ से उसकी आवाज़ हमेशा के लिए सिर्फ इसलिए नहीं छींन सकते क्यूंकि वह गरीब है। ”

डॉ. राव ने अब तक ३ मरीजो पर इसका उपयोग किया है। डॉक्टर इस यंत्र को और भी बेहतर बनाना चाहते है ताकि देश भर के कैंसर अस्पताल इसका इस्तेमाल कर सके।

throat cancer patients
प्रोस्थेसीस का साइड व्यूह

“सबसे पहले पीनिया के एक चौकीदार पर मैंने इसका प्रयोग किया। २ साल पहले उसके प्रोस्थेसिस के लिये हमने पैसे जमा किये थे। यंत्र का इस्तेमाल सिर्फ ६ महीने तक करना चाहिये पर गरीब होने के कारण उसने २ साल तक उसका उपयोग किया। मैंने उस पर AUM वोइस प्रोस्थेसिस का इस्तेमाल किया। एक दिन नाईट ड्यूटी से उसने मुझे कॉल करके कहा कि यंत्र अच्छी तरह से चल रहा है और वो बहुत खुश है। ये सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। ”
-डॉक्टर ने बड़े ही गर्व से कहा।

उपकरण को AUM क्यों कहा जाता है?

डॉ. राव कहते है –
“पुरातनकाल में ॐ को “अउम” (AUM) नाम से जाना जाता था।  ‘अ’ मतलब निर्माण, ‘उ’ मतलब  जीविका और ‘म’ मतलब  विनाश। इन तीनो के आधार पर ही यह संसार चलता है। वोइस बॉक्स खोने के बाद जब ये उपकरण मरीज को दिया जाता है तब उसका पुनर्जन्म होता है, ठीक उसी तरह से जैसे सृष्टि  की उत्पत्ति ओम से ही हुयी है।”

बुंदेली समाज బొందిలి సమాజ్   BONDILI SAMAAJ


मंगलवार, 19 जनवरी 2016


बुंदेली समाज బొందిలి సమాజ్   BONDILI SAMAAJ


56 (छप्पन) भोग क्यों लगाते है...

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भगवान को लगाए जाने वाले भोग

की बड़ी महिमा है |

इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे

छप्पन भोग कहा जाता है |

यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी,

पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म

होता है |

अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान

को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे

कई रोचक कथाएं हैं |

ऐसा भी कहा जाता है

कि यशोदाजी बालकृष्ण को एक दिन में अष्ट पहर

भोजन कराती थी | अर्थात्...बालकृष्ण आठ बार

भोजन करते थे |

जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए

भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत

को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक

भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया |

आठवे दिन जब भगवान ने देखा कि अब इंद्र

की वर्षा बंद हो गई है,

सभी व्रजवासियो को गोवर्धन पर्वत से बाहर

निकल जाने को कहा, तब दिन में आठ प्रहर भोजन

करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार

सात दिन तक भूखा रहना उनके व्रज वासियों और

मया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ. भगवान के

प्रति अपनी अन्न्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए

सभी व्रजवासियो सहित यशोदा जी ने 7 दिन

और अष्ट पहर के हिसाब से 7X8= 56

व्यंजनो का भोग बाल कृष्ण को लगाया |

गोपिकाओं ने भेंट किए छप्पन भोग...

श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह

तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया,

अपितु कात्यायनी मां की अर्चना भी इस

मनोकामना से की, कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप

में प्राप्त हों |

श्रीकृष्ण ने

उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी |

व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के

उपलक्ष्य में ही उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन

भोग का आयोजन किया |

छप्पन भोग हैं छप्पन सखियां...

ऐसा भी कहा जाता है कि गौलोक में भगवान

श्रीकृष्ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर

विराजते हैं |

उस कमल की तीन परतें होती हैं...

प्रथम परत में "आठ",

दूसरी में "सोलह"

और

तीसरी में "बत्तीस पंखुड़िया" होती हैं |

प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में

भगवान विराजते हैं |

इस तरह कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है |

56 संख्या का यही अर्थ है |

-:::: छप्पन भोग इस प्रकार है ::::-

1. भक्त (भात),

2. सूप (दाल),

3. प्रलेह (चटनी),

4. सदिका (कढ़ी),

5. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी),

6. सिखरिणी (सिखरन),

7. अवलेह (शरबत),

8. बालका (बाटी),

9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),

10. त्रिकोण (शर्करा युक्त),

11. बटक (बड़ा),

12. मधु शीर्षक (मठरी),

13. फेणिका (फेनी),

14. परिष्टïश्च (पूरी),

15. शतपत्र (खजला),

16. सधिद्रक (घेवर),

17. चक्राम (मालपुआ),

18. चिल्डिका (चोला),

19. सुधाकुंडलिका (जलेबी),

20. धृतपूर (मेसू),

21. वायुपूर (रसगुल्ला),

22. चन्द्रकला (पगी हुई),

23. दधि (महारायता),

24. स्थूली (थूली),

25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी),

26. खंड मंडल (खुरमा),

27. गोधूम (दलिया),

28. परिखा,

29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त),

30. दधिरूप (बिलसारू),

31. मोदक (लड्डू),

32. शाक (साग),

33. सौधान (अधानौ अचार),

34. मंडका (मोठ),

35. पायस (खीर)

36. दधि (दही),

37. गोघृत,

38. हैयंगपीनम (मक्खन),

39. मंडूरी (मलाई),

40. कूपिका (रबड़ी),

41. पर्पट (पापड़),

42. शक्तिका (सीरा),

43. लसिका (लस्सी),

44. सुवत,

45. संघाय (मोहन),

46. सुफला (सुपारी),

47. सिता (इलायची),

48. फल,

49. तांबूल,

50. मोहन भोग,

51. लवण,

52. कषाय,

53. मधुर,

54. तिक्त,

55. कटु,

56. अम्ल.

|| जय श्री कृष्णा

🚩🚩🚩🚩🇮🇳🚩🚩🚩🚩

कृपया आलस्य त्यागें एवं दो मिनट के ये पोस्ट पढ़े

📜अपनी भारत की संस्कृति

को पहचाने.

ज्यादा से ज्यादा

लोगो तक पहुचाये. खासकर अपने बच्चो को बताए क्योकि ये बात उन्हें कोई नहीं बताएगा... और सच बोलू तो 

ये बाते हमे भी थोड़ी बहुत ही पता हे और हमारे साथ ही ये सब बाते ख़तम होती चली जाएगी....

इसको आगे जरुर भेजे और अगर आप के पास भी कोई जानकारी हे तो उसे भी इसमें जोड़ दे। अपनी आने वाली 

पीडी को इतना तो हम दे ही सकते हे....

📜🇮🇳🇮🇳📜

📜😇( ०१ ) दो पक्ष-

कृष्ण पक्ष ,

शुक्ल पक्ष !

📜😇( ०२ ) तीन ऋण -

देव ऋण ,

पितृ ऋण ,

ऋषि ऋण !

📜😇( ०३ ) चार युग -

सतयुग ,

त्रेतायुग ,

द्वापरयुग ,

कलियुग !

📜😇( ०४ ) चार धाम -

द्वारिका ,

बद्रीनाथ ,

जगन्नाथ पुरी ,

रामेश्वरम धाम !

📜😇( ०५ ) चारपीठ -

शारदा पीठ ( द्वारिका )

ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )

गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,

शृंगेरीपीठ !

📜😇( ०६ ) चार वेद-

ऋग्वेद ,

अथर्वेद ,

यजुर्वेद ,

सामवेद !

📜😇( ०७ ) चार आश्रम -

ब्रह्मचर्य ,

गृहस्थ ,

वानप्रस्थ ,

संन्यास !

📜😇( ०८ ) चार अंतःकरण -

मन ,

बुद्धि ,

चित्त ,

अहंकार !

📜😇( ०९ ) पञ्च गव्य -

गाय का घी ,

दूध ,

दही ,

गोमूत्र ,

गोबर !

📜😇( १० ) पञ्च देव -

गणेश ,

विष्णु ,

शिव ,

देवी ,

सूर्य !

📜😇( ११ ) पंच तत्त्व -

पृथ्वी ,

जल ,

अग्नि ,

वायु ,

आकाश !

📜😇( १२ ) छह दर्शन -

वैशेषिक ,

न्याय ,

सांख्य ,

योग ,

पूर्व मिसांसा ,

दक्षिण मिसांसा !

📜😇( १३ ) सप्त ऋषि -

विश्वामित्र ,

जमदाग्नि ,

भरद्वाज ,

गौतम ,

अत्री ,

वशिष्ठ और कश्यप!

📜😇( १४ ) सप्त पुरी -

अयोध्या पुरी ,

मथुरा पुरी ,

माया पुरी ( हरिद्वार ) ,

काशी ,

कांची

( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,

अवंतिका और

द्वारिका पुरी !

📜😇( १५ ) आठ योग -

यम ,

नियम ,

आसन ,

प्राणायाम ,

प्रत्याहार ,

धारणा ,

ध्यान एवं

समािध !

📜😇( १६ ) आठ लक्ष्मी -

आग्घ ,

विद्या ,

सौभाग्य ,

अमृत ,

काम ,

सत्य ,

भोग ,एवं

योग लक्ष्मी !

📜😇( १७ ) नव दुर्गा --

शैल पुत्री ,

ब्रह्मचारिणी ,

चंद्रघंटा ,

कुष्मांडा ,

स्कंदमाता ,

कात्यायिनी ,

कालरात्रि ,

महागौरी एवं

सिद्धिदात्री !

📜😇( १८ ) दस दिशाएं -

पूर्व ,

पश्चिम ,

उत्तर ,

दक्षिण ,

ईशान ,

नैऋत्य ,

वायव्य ,

अग्नि

आकाश एवं

पाताल !

📜😇( १९ ) मुख्य ११ अवतार -

मत्स्य ,

कच्छप ,

वराह ,

नरसिंह ,

वामन ,

परशुराम ,

श्री राम ,

कृष्ण ,

बलराम ,

बुद्ध ,

एवं कल्कि !

📜😇( २० ) बारह मास -

चैत्र ,

वैशाख ,

ज्येष्ठ ,

अषाढ ,

श्रावण ,

भाद्रपद ,

अश्विन ,

कार्तिक ,

मार्गशीर्ष ,

पौष ,

माघ ,

फागुन !

📜😇( २१ ) बारह राशी -

मेष ,

वृषभ ,

मिथुन ,

कर्क ,

सिंह ,

कन्या ,

तुला ,

वृश्चिक ,

धनु ,

मकर ,

कुंभ ,

कन्या !

📜😇( २२ ) बारह ज्योतिर्लिंग -

सोमनाथ ,

मल्लिकार्जुन ,

महाकाल ,

ओमकारेश्वर ,

बैजनाथ ,

रामेश्वरम ,

विश्वनाथ ,

त्र्यंबकेश्वर ,

केदारनाथ ,

घुष्नेश्वर ,

भीमाशंकर ,

नागेश्वर !

📜😇( २३ ) पंद्रह तिथियाँ -

प्रतिपदा ,

द्वितीय ,

तृतीय ,

चतुर्थी ,

पंचमी ,

षष्ठी ,

सप्तमी ,

अष्टमी ,

नवमी ,

दशमी ,

एकादशी ,

द्वादशी ,

त्रयोदशी ,

चतुर्दशी ,

पूर्णिमा ,

अमावास्या !

📜😇( २४ ) स्मृतियां -

मनु ,

विष्णु ,

अत्री ,

हारीत ,

याज्ञवल्क्य ,

उशना ,

अंगीरा ,

यम ,

आपस्तम्ब ,

सर्वत ,

कात्यायन ,

ब्रहस्पति ,

पराशर ,

व्यास ,

शांख्य ,

लिखित ,

दक्ष ,

शातातप ,

वशिष्ठ !

ॐ ~


सोमवार, 18 जनवरी 2016