शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016




बुंदेली समाज బొందిలి సమాజ్   BONDILI SAMAAJ

हजारों साल पहले ऋषियों के आविष्कार, पढ़कर रह जाएंगे हैरान

           भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है। सनातन धर्म वेद को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेद में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले ही कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किए व युक्तियां बताईं। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।
      कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।
         अगले पृष्ठों पर जानिए ऐसे ही असाधारण या यूं कहें कि प्राचीन वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों द्वारा किए आविष्कार व उनके द्वारा उजागर रहस्यों को जिनसे आप भी अब तक अनजान होंगे –

1. महर्षि दधीचि 

      महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। वे संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान करने की वजह से महर्षि दधीचि बड़े पूजनीय हुए। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं ने विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर को पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे। ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए वज्र बनाने के लिए देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए अपनी हड्डियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।

2. आचार्य कणाद 

कणाद परमाणुशास्त्र के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले आचार्य कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।

3. भास्कराचार्य 

आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।

4. आचार्य चरक 

‘चरकसंहिता’ जैसा महत्तवपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर की सबसे ज्यादा होने वाली डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग जैसी बीमारियों के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर की।

5. भारद्वाज 

आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।

6. कण्व 

 वैदिक कालीन ऋषियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।

7. कपिल मुनि 

भगवान विष्णु का पांचवां अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र चाहा। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि ‘सांख्य दर्शन’ के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही ‘सांख्य दर्शन’ कहलाता है।
इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर ने द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।

8. पतंजलि 

आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।

9. शौनक 

वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।
10. महर्षि सुश्रुत
ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक
(सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।
जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।

11. वशिष्ठ 

वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।

12. विश्वामित्र 

ऋषि बनने से पहले
विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।
ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।

13. महर्षि अगस्त्य

 वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।

14. गर्गमुनि 
गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के के बारे नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।

15. बौद्धयन

भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।




गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016



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बुंदेली समाज బొందిలి సమాజ్   BONDILI SAMAAJ

प्रभु श्रीराम ने दिया गिलहरी को इस कारण से ये अनोखा उपहार



सड़क या फिर किसी अन्य स्थान पर आपने कभी न कभी किसी भिखारी को भीख मांगते हुए जरूर देखा होगा. ऐसे में कभी आपने इन भिखारियों को पैसे दिए होंगे और कभी आगे बढ़ गए होंगे. ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि कभी-कभी हमारे मन में ये विचार आता है कि भला चंद सिक्कों से इन लोगों के जीवन पर क्या फर्क पड़ेगा. दूसरी तरफ कुछ परोपकारी प्रवृत्ति के लोग ये भी सोचते हैं कि ‘काश! हम इतने धनवान होते हैं कि इन लोगों का भला कर सकते, बस इसी विचार में किसी दिन, कुछ बड़ा करने की अभिलाषा रखते हुए उस दिन का इंतजार करते हैं. लेकिन इस विचारों से परे पुराणों में दान देने की एक विशेषता बताई गई है जिसमें व्यक्ति को अपने सामर्थ्य अनुसार थोड़ा ही सही किंतु दान या फिर कोई काम जरूर करना चाहिए. अर्थात जीवन में किए गए छोटे से परोपकार या काम का भी बहुत महत्व है.

lord ram and squirel

Read : श्रीराम ने भक्त हनुमान पर किया था ब्रह्मास्त्र का प्रयोग, इस कारण से पवनपुत्र के बचे प्राण

जिसे प्रकृति और भगवान द्वारा हमेशा ही सराहा जाता है. ऐसी ही एक कहानी रामायण में मिलती है. जिसमें गिलहरी के छोटे से प्रयास से प्रसन्न होकर प्रभु श्रीराम ने गिलहरी प्रजाति को अपना प्रिय जीव बना लिया था. इस कहानी के अनुसार रामसेतु बनाने का कार्य चल रहा था. भगवान राम को काफी देर तक एक ही दिशा में निहारते हुए देख लक्ष्मण ने पूछा ‘भैया क्या देख रहें हैं.’ भगवान राम ने इशारा करते हुए कहा कि ‘वो देखो लक्ष्मण एक गिलहरी बार – बार समुद्र के किनारे जाती है और रेत पर लोटपोट करके रेत को अपने शरीर पर चिपका लेती है. जब रेत उसके शरीर पर चिपक जाती है फिर वह सेतु पर जाकर अपनी सारी रेत सेतु पर झाड़ आती है. वह काफी देर से यही कार्य कर रही है. लक्ष्मण बोले ‘प्रभु वह समुन्द्र में क्रीड़ा का आनंद ले रही है ओर कुछ नहीं’. भगवान राम ने कहा,  ‘नहीं लक्ष्मण तुम उस गिलहरी के भाव को समझने का प्रयास करो. चलो आओ उस गिलहरी से ही पूछ लेते हैं कि वह क्या कर रही है.’ दोनों भाई उस गिलहरी के निकट गए. भगवान राम ने गिलहरी से पूछा कि ‘तुम क्या कर रही हो?’  गिलहरी ने उत्तर दिया कि कुछ नहीं प्रभु बस इस पुण्य कार्य में थोड़ा बहुत योगदान दे रही हूं.

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भगवान राम को उत्तर देकर गिलहरी फिर से अपने कार्य के लिए जाने लगी, तो भगवान राम उसे टोकते हुए बोले ‘तुम्हारी रेत के कुछ कण डालने से क्या होगा?’ गिलहरी ने कहा ‘प्रभु आप सत्य कह रहे हैं. मैं सृष्टि की इतनी लघु प्राणी होने के कारण इस महान कार्य हेतु कर भी क्या सकती हूं. मेरे कार्य का मूल्यांकन भी क्या होगा परतुं, प्रभु में यह कार्य किसी आकांक्षा से नहीं कर रही. यह कार्य तो राष्ट्र कार्य है, धर्म की अधर्म पर जीत का कार्य है. मनुष्य जितना कार्य कर सके नि:स्वार्थ भाव से राष्ट्रहित का कार्य करना चाहिए’. भगवान राम गिलहरी की बात सुनकर भाव विभोर हो उठे. भगवान राम ने उस छोटी सी गिलहरी को अपनी हथेली पर बैठा लिया और उसके शरीर पर प्यार से हाथ फेरने लगे. भगवान राम की अंगुलियों का स्पर्श पाकर गिलहरी की पीठ पर दो धारियां छप गई. जो प्रभु राम के स्नेह के प्रतीक के रूप में मानी जाती है…Next
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रामायण ही न होता अगर वह न होती, फिर भी उसका जिक्र रामायण में नहीं है. क्यों? हैरत में डालने वाला राम से जुड़ा एक सच

रामायण काल के साक्षी हैं ये अकाट्य सबूत

तो इस तरह महाभारत में सुनाई गई रामायण की कहानी