सोमवार, 5 सितंबर 2016

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रविवार, 28 अगस्त 2016

बुंदेली समाज బొందిలి సమాజ్   BONDILI SAMAAJ  http://jaishanker63.wix.com/bondilisamaaj                  ब्राह्मण की वंशावली                                                                                                           भविष्य पुराण के अनुसार ब्राह्मणों का इतिहास है की प्राचीन काल में महर्षि कश्यप के पुत्र कण्वय की आर्यावनी नाम की देव कन्या पत्नी हुई। ब्रम्हा की आज्ञा से दोनों कुरुक्षेत्र वासनी सरस्वती नदी के तट  पर गये और कण् व चतुर्वेदमय सूक्तों में सरस्वती देवी की स्तुति करने लगे एक वर्ष बीत जाने पर वह देवी प्रसन्न हो वहां आयीं और ब्राम्हणो की समृद्धि के लिये उन्हें  वरदान दिया ।  वर के प्रभाव कण्वय के आर्य बुद्धिवाले दस पुत्र हुए जिनका  क्रमानुसार नाम था -


उपाध्याय,
दीक्षित,
पाठक,
शुक्ला,
मिश्रा,
अग्निहोत्री,
दुबे,
तिवारी,
पाण्डेय,
और
चतुर्वेदी ।
इन लोगो का जैसा नाम था वैसा ही गुण। इन लोगो ने नत मस्तक हो सरस्वती देवी को प्रसन्न किया। बारह वर्ष की अवस्था वाले उन लोगो को भक्तवत्सला शारदा देवी ने 
अपनी कन्याए प्रदान की।
वे क्रमशः
उपाध्यायी,
दीक्षिता,
पाठकी,
शुक्लिका,
मिश्राणी,
अग्निहोत्रिधी,
द्विवेदिनी,
तिवेदिनी
पाण्ड्यायनी,
और
चतुर्वेदिनी कहलायीं।
फिर उन कन्याआं के भी अपने-अपने पति से सोलह-सोलह पुत्र हुए हैं
वे सब गोत्रकार हुए जिनका नाम -
कष्यप,
भरद्वाज,
विश्वामित्र,
गौतम,
जमदग्रि,
वसिष्ठ,
वत्स,
गौतम,
पराशर,
गर्ग,
अत्रि,
भृगडत्र,
अंगिरा,
श्रंगी,
कात्याय,
और
याज्ञवल्क्य।
इन नामो से सोलह-सोलह पुत्र जाने जाते हैं।
मुख्य 10 प्रकार ब्राम्हणों ये हैं-
(1)
तैलंगा,
(2)
महार्राष्ट्रा,
(3)
गुर्जर,
(4)
द्रविड,
(5)
कर्णटिका,
यह पांच "द्रविण" कहे जाते हैं, ये विन्ध्यांचल के दक्षिण में पाय जाते हैं|
तथा
विंध्यांचल के उत्तर मं पाये जाने वाले या वास करने वाले ब्राम्हण
(1)
सारस्वत,
(2)
कान्यकुब्ज,
(3)
गौड़,
(4)
मैथिल,
(5)
उत्कलये,
उत्तर के पंच गौड़ कहे जाते हैं।
वैसे ब्राम्हण अनेक हैं जिनका वर्णन आगे लिखा है।
ऐसी संख्या मुख्य 115 की है।
शाखा भेद अनेक हैं । इनके अलावा संकर जाति ब्राम्हण अनेक है ।
यहां मिली जुली उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हणों की नामावली 115 की दे रहा हूं।
जो एक से दो और 2 से 5 और 5 से 10 और 10 से 84 भेद हुए हैं,
फिर उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हण की संख्या शाखा भेद से 230 के
लगभग है | 
तथा और भी शाखा भेद हुए हैं, जो लगभग 300 के करीब ब्राम्हण भेदों की संख्या का लेखा पाया गया है।
उत्तर व दक्षिणी ब्राम्हणां के भेद इस प्रकार है
81
ब्राम्हाणां की 31 शाखा कुल 115 ब्राम्हण संख्या
(1)
गौड़ ब्राम्हण,
(2)
मालवी गौड़ ब्राम्हण,
(3)
श्री गौड़ ब्राम्हण,
(4)
गंगापुत्र गौडत्र ब्राम्हण,
(5)
हरियाणा गौड़ ब्राम्हण,
(6)
वशिष्ठ गौड़ ब्राम्हण,
(7)
शोरथ गौड ब्राम्हण,
(8)
दालभ्य गौड़ ब्राम्हण,
(9)
सुखसेन गौड़ ब्राम्हण,
(10)
भटनागर गौड़ ब्राम्हण,
(11)
सूरजध्वज गौड ब्राम्हण(षोभर),
(12)
मथुरा के चौबे ब्राम्हण,
(13)
वाल्मीकि ब्राम्हण,
(14)
रायकवाल ब्राम्हण,
(15)
गोमित्र ब्राम्हण,
(16)
दायमा ब्राम्हण,
(17)
सारस्वत ब्राम्हण,
(18)
मैथल ब्राम्हण,
(19)
कान्यकुब्ज ब्राम्हण,
(20)
उत्कल ब्राम्हण,
(21)
सरवरिया ब्राम्हण,
(22)
पराशर ब्राम्हण,
(23)
सनोडिया या सनाड्य,
(24)
मित्र गौड़ ब्राम्हण,
(25)
कपिल ब्राम्हण,
(26)
तलाजिये ब्राम्हण,
(27)
खेटुवे ब्राम्हण,
(28)
नारदी ब्राम्हण,
(29)
चन्द्रसर ब्राम्हण,
(30)
वलादरे ब्राम्हण,
(31)
गयावाल ब्राम्हण,
(32)
ओडये ब्राम्हण,
(33)
आभीर ब्राम्हण,
(34)
पल्लीवास ब्राम्हण,
(35)
लेटवास ब्राम्हण,
(36)
सोमपुरा ब्राम्हण,
(37)
काबोद सिद्धि ब्राम्हण,
(38)
नदोर्या ब्राम्हण,
(39)
भारती ब्राम्हण,
(40)
पुश्करर्णी ब्राम्हण,
(41)
गरुड़ गलिया ब्राम्हण,
(42)
भार्गव ब्राम्हण,
(43)
नार्मदीय ब्राम्हण,
(44)
नन्दवाण ब्राम्हण,
(45)
मैत्रयणी ब्राम्हण,
(46)
अभिल्ल ब्राम्हण,
(47)
मध्यान्दिनीय ब्राम्हण,
(48)
टोलक ब्राम्हण,
(49)
श्रीमाली ब्राम्हण,
(50)
पोरवाल बनिये ब्राम्हण,
(51)
श्रीमाली वैष्य ब्राम्हण 
(52)
तांगड़ ब्राम्हण,
(53)
सिंध ब्राम्हण,
(54)
त्रिवेदी म्होड ब्राम्हण,
(55)
इग्यर्शण ब्राम्हण,
(56)
धनोजा म्होड ब्राम्हण,
(57)
गौभुज ब्राम्हण,
(58)
अट्टालजर ब्राम्हण,
(59)
मधुकर ब्राम्हण,
(60)
मंडलपुरवासी ब्राम्हण,
(61)
खड़ायते ब्राम्हण,
(62)
बाजरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(63)
भीतरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(64)
लाढवनिये ब्राम्हण,
(65)
झारोला ब्राम्हण,
(66)
अंतरदेवी ब्राम्हण,
(67)
गालव ब्राम्हण,
(68)
गिरनारे ब्राम्हण   
(69) बोंदिली ब्राह्मण 
सभी ब्राह्मण बंधुओ को मेरा नमस्कार बहुत दुर्लभ जानकारी है जरूर पढ़े। और समाज में सेयर करे हम क्या है
इस तरह ब्राह्मणों की उत्पत्ति और इतिहास के साथ इनका विस्तार अलग अलग राज्यो में हुआ और ये उस राज्य के ब्राह्मण कहलाये।
ब्राह्मण बिना धरती की कल्पना ही नहीं की जा सकती इसलिए ब्राह्मण होने पर गर्व करो और अपने कर्म और धर्म का पालन कर सनातन संस्कृति की रक्षा करे।
🙏🌹🙏जय श्री परशुराम🙏🌹

मंगलवार, 23 अगस्त 2016




बुंदेली समाज బొందిలి సమాజ్   BONDILI SAMAAJ  http://jaishanker63.wix.com/bondilisamaaj  

                             जनेऊ क्या है :                                                  


आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर ए क कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। इस धागे को जनेऊ कहते हैं। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। जनेऊ को संस्कृत भाषा में ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है। यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे।
तीन सूत्र क्यों : जनेऊ में मुख्‍यरूप से तीन धागे होते हैं। यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है। यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है।यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है।
नौ तार : यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं।
पांच गांठ : यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है।
वैदिक धर्म में प्रत्येक आर्य का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। प्रत्येक आर्य (हिन्दू) जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे।
ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म।
लडकियोंको भी जनेऊ धारण करने का अधिकार है ।
जनेऊ की लंबाई : यज्ञोपवीत की लंबाई 96 अंगुल होती है। इसका अभिप्राय यह है कि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर कुल 32 विद्याएं होती है। 64 कलाओं में जैसे- वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि।
जनेऊ के नियम :
1. यज्ञोपवीत को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका स्थूल भाव यह है कि यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। अपने व्रतशीलता के संकल्प का ध्यान इसी बहाने बार-बार किया जाए।
2. यज्ञोपवीत का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक समय हो जाए, तो बदल देना चाहिए। खंडित यज्ञोपवीत शरीर पर नहीं रखते। धागे कच्चे और गंदे होने लगें, तो पहले ही बदल देना उचित है।
3. जन्म-मरण के सूतक के बाद इसे बदल देने की परम्परा है। महिलाओं को हर मास मासिक धर्म के बाद जनेऊ को बदल देना चाहिए ।
4. यज्ञोपवीत शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता। साफ करने के लिए उसे कण्ठ में पहने रहकर ही घुमाकर धो लेते हैं। भूल से उतर जाए, तो प्रायश्चित करें ।
5. मर्यादा बनाये रखने के लिए उसमें चाबी के गुच्छे आदि न बांधें। इसके लिए भिन्न व्यवस्था रखें। बालक जब इन नियमों के पालन करने योग्य हो जाएं, तभी उनका यज्ञोपवीत करना चाहिए।
* चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।
* वैज्ञानिकों अनुसार बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
* कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।
* कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है।
* माना जाता है कि शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह काम करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कमर तक स्थित है। जनेऊ धारण करने से विद्युत प्रवाह नियंत्रित रहता है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है।
* जनेऊ से पवित्रता का अहसास होता है। यह मन को बुरे कार्यों से बचाती है। कंधे पर जनेऊ है, इसका मात्र अहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से दूर रहने लगता है।
जनेऊ का सम्मान करना और उसे धारण करना हम ब्राह्मणों का परम् कर्तव्य है जिसे हमे धारण करना चाहिए और लोगो तक इस जानकारी को पहुचाना चाहिए।






बुदेली समाज బొందిలి సమాజ్   BONDILI SAMAAJ   http://jaishanker63.wix.com/bondilisamaaj                                                       यादगार जीवन के क्षण