शनिवार, 23 नवंबर 2013

          
బొందిలి సమాజ్  बुंदेली समाज BONDILI SAMAAJ
भूमिहार या बाभन (अयाचक
ब्राह्मण)
              एक ऐसी सवर्ण जाति है जो अपने शौर्य, पराक्रम एवं बुद्धिमत्ता के लिए जानी जाती है। बिहार, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं झारखण्ड में निवास करने वाले भूमिहार जाति अर्थात अयाचक ब्राह्मणों को त्यागी नाम की उप-जाति से जाना व पहचाना जाता है। मगध के महान पुष्य मित्र शुंग और कण्व वंश दोनों ही ब्राह्मण राजवंश भूमिहार ब्राह्मण (बाभन) के थे ।
 भूमिहार ब्राह्मण भगवन परशुराम को प्राचीन समय से अपना मूल पुरुष और कुल गुरु मानते हैं।               भूमिहार ब्राह्मण समाज में कुल १० उपाधियाँ  हैं ।  1 -पाण्डेय 2-तिवारी/त्रिपाठी 3- मिश्र 4-शुक्ल 5-यजी 6 -करजी 7-उपाध्याय 8-शर्मा 9-ओझा 10-दुबे\द्विवेदी इसके अलावा राजपाट और ज़मींदारी के कारण  एक बड़ा भाग भूमिहार ब्राह्मण का राय ,शाही ,सिंह, उत्तर प्रदेश में शाही, सिंह (सिन्हा) , चौधरी (मैथिल से ),ठाकुर (मैथिल से ) बिहार में लिखने लगे बहुत से भूमिहार या बामन भी लिखते हैं । 

        भूमिहार ब्राह्मण कुछ जगह प्राचीन समय से पुरोहिती करते चले आ रहे हैं ।  अनुसंधान करने पर पता लगा कि प्रयाग की त्रिवेणी के सभी पंडे भूमिहार ही तो हैं ।  हजारीबाग के इटखोरी और चतरा थाने के 8-10 कोस में बहुत से भूमिहार ब्राह्मण, राजपूत,बंदौत , कायस्थ और माहुरी आदि की पुरोहिती सैकड़ों वर्ष से करते चले आ रहे हैं और गजरौला, ताँसीपुर के त्यागी राजपूतों की यही इनका पेशा है ।  गया के देव के सूर्यमंदिर के पुजारी भूमिहार ब्राह्मण ही मिले। इसी प्रकार और जगह भी कुछ न कुछ यह बात किसी न किसी रूप में पाई गई। हलाकि गया के देव के सूर्यमंदिर का बड़ा हिस्सा सकद्विपियो को बेचा जा चुका है । 
               
 भूमिहार ब्राह्मण भगवान परशुराम को प्राचीन समय से अपना मूल पुरुष और कुल गुरु मानते हैं । १. एम.ए. शेरिंग ने १८७२ में अपनी पुस्तक Hindu Tribes & Caste में कहा है कि, "भूमिहार जाति के लोग हथियार उठाने वाले ब्राहमण हैं (सैनिक ब्राह्मण)।"

२. अंग्रेज विद्वान मि. बीन्स ने लिखा है - "भूमिहार एक अच्छी किस्म की बहादुर प्रजाति है, जिसमें आर्य जाति की सभी विशिष्टताएं विद्यमान हैं । ये स्वाभाव से निर्भीक व हावी होने वाले होते हैं ।"
३. पंडित अयोध्या प्रसाद ने अपनी पुस्तक "विप्रोत्तम परिचय" में भूमिहार को- भूमि की माला या शोभा बढ़ाने वाला, अपने महत्वपूर्ण गुणों तथा लोकहितकारी कार्यों से भूमंडल को शुशोभित करने वाला, समाज के हृदयस्थल पर सदा विराजमान- सर्वप्रिय ब्राह्मण कहा है।
४. विद्वान योगेन्द्र नाथ भट्टाचार्य ने अपनी पुस्तक हिन्दू कास्ट & सेक्ट्स में लिखा है की भूमिहार ब्राह्मण की सामाजिक स्थिति का पता उनके नाम से ही लग जाता है, जिसका अर्थ है भूमिग्राही ब्राह्मण। पंडित नागानंद वात्स्यायन द्वारा लिखी गई पुस्तक - " भूमिहार ब्राह्मण इतिहास के दर्पण में "
" भूमिहारो का संगठन जाति के रूप में "
      भूमिहार ब्राह्मण जाति ब्राह्मणों के विभिन्न भेदों और शाखाओं के अयाचक लोगो का एक संगठन ही है । प्रारंभ में कान्यकुब्ज शाखा से निकले लोगों को भूमिहार ब्राह्मण कहा गया, उसके बाद सारस्वत,महियल,सरयूपारी,मैथिल,चितपावन,कन्नड़ आदि शाखाओं के अयाचक ब्राह्मण लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में इन लोगों से सम्बन्ध स्थापित कर भूमिहार ब्राह्मणों में मिलते गए । मगध के बाभनो और मिथिलांचल के पश्चिमी तथा प्रयाग के जमींदार ब्राह्मण भी अयाचक होने से भूमिहार ब्राह्मणों में ही सम्मिलित होते गए । 
भूमिहार ब्राह्मण के कुछ मूलों ( कूरी ) के लोगो का भूमिहार ब्राह्मण में संगठित होने की एक सूची यहाँ दी जा रही है :
१. कान्यकुब्ज शाखा से :- दोनवार ,सकरवार,किन्वार, ततिहा , ननहुलिया, वंशवार के तिवारी, कुढ़ानिया, दसिकर, आदि.
२. सरयू नदी के तट पर बसने वाले से : - गौतम, कोल्हा (कश्यप), नैनीजोर के तिवारी , पूसारोड (दरभंगा) खीरी से आये पराशर गोत्री पांडे, मुजफ्फरपुर में मथुरापुर के गर्ग गोत्री शुक्ल, गाजीपुर के भारद्वाजी, मचियाओं और खोर के पांडे, म्लाओं के सांकृत गोत्री पांडे, इलाहबाद के वत्स गोत्री गाना मिश्र ,आदि.
३. मैथिल शाखा से : - मैथिल शाखा से बिहार में बसने वाले कई मूल के भूमिहार ब्राह्मण आये हैं । इनमें सवर्ण गोत्री बेमुवार और शांडिल्य गोत्री दिघवय - दिघ्वैत और दिघ्वय संदलपुर, बहादुरपुर के चौधरी प्रमुख हैं। (चौधरी, राय, ठाकुर, सिंह मुख्यतः मैथिल ही प्रयोग करते हैं ।)
४. महियालो से : - महियालो की बाली शाखा के पराशर गोत्री ब्राह्मण पंडित जगन्नाथ दीक्षित छपरा (बिहार) में एकसार स्थान पर बस गए । एकसार में प्रथम वास करने से वैशाली, मुजफ्फरपुर, चैनपुर, समस्तीपुर, छपरा, परसगढ़, सुरसंड, गौरैया कोठी, गमिरार, बहलालपुर , आदि गाँव में बसे हुए पराशर गोत्री एक्सरिया मूल के भूमिहार ब्राह्मण हो गए । 
५. चित्पावन से : - न्याय भट्ट नामक चितपावन ब्राह्मण सपरिवार श्राध हेतु गया कभी पूर्व काल में आये थे । अयाचक ब्रह्मण होने से इन्होने अपनी पोती का विवाह मगध के इक्किल परगने में वत्स गोत्री दोनवार के पुत्र उदय भान पांडे से कर दिया और भूमिहार ब्राह्मण हो गए ।पटना डाल्टनगंज रोड पर धरहरा,भरतपुर आदि कई गाँव में तथा दुमका,भोजपुर,रोहतास के कई गाँव में ये चित्पवानिया मूल के कौन्डिल्य गोत्री अथर्व भूमिहार ब्राह्मण रहते हैं । 
१. सर्वप्रथम १८८५ में ऋषिकुल भूषण काशी नरेश महाराज श्री इश्वरी प्रसाद सिंह जी ने वाराणसी में अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मण महासभा की स्थापना की । 
२. १८८५ में अखिल भारतीय त्यागी महासभा की स्थापना मेरठ में हुई । 
३. १८९० में मोहियल सभा की स्थापना हुई.
४. १९१३ में स्वामी सहजानंद जी ने बलिया में आयोजित
५. १९२६ में पटना में अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मण महासभा का अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता चौधरी रघुवीर नारायण सिंह त्यागी ने की । 
६. १९२७ में प्रथम याचक ब्राह्मण सम्मलेन की अध्यक्षता सर गणेश दत्त ने की । 
७. १९२७ में मेरठ में ही अखिल भारतीय त्यागी महासभा की अध्यक्षता राय बहादुर जगदेव राय ने की । 
८. १९२६-२७ में अपने अधिवेशन में कान्यकुब्ज ब्राह्मणों ने प्रस्ताव पारित कर भूमिहार ब्राह्मणों को अपना अंग घोषित करते हुए अपने समाज के गठन में सम्मलित होने का निमंत्रण दिया । 
९. १९२९ में सारस्वत ब्राह्मण महासभा ने भूमिहार ब्राह्मणों को अपना अंग मानते हुए अनेक प्रतिनिधियों को अपने संगठन का सदस्य बनाया । 
१०. १९४५ में बेतिया (बिहार) में अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मण महासम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता डा.बी.एस.पूंजे (चित्पावन ब्राह्मण) ने की । 
११. १९६८ में श्री सूर्य नारायण सिंह (बनारस ) के प्रयास से ब्रहामर्शी सेवा समिति का गठन हुआ । और इस  वर्ष रोहनिया में एक अधिवेशन पंडित अनंत शास्त्री फडके (चित्पावन ) की अध्यक्षता में हुआ । 
१२. १९७५ में लक्नाऊ में भूमेश्वर समाज तथा कानपूर में भूमिहार ब्राह्मण समाज की स्थापना हुई । 
१३. १९७९ में अखिल भारतीय ब्रह्मर्षि परिषद् का गठन हुआ । 
१४. ८ मार्च १९८१ गोरखपुर में भूमिहार ब्राह्मण समाज का गठन । 
१५. २३ अक्टूबर १९८४ में गाजीपुर में प्रांतीय भुमेश्वर समाज का अधिवेशन जिसकी अध्यक्षता श्री मथुरा राय ने की ।डॉ.रघुनाथ सिंह जी ने इस सम्मलेन का उदघाटन किया । 
१६. १८८९ में इलाहाबाद में भूमेश्वर समाज की स्थापना हुई । 
" भूमिहार " शब्द कहाँ और कबसे अस्तित्व में आया ?
        भूमिपति ब्राह्मणों के लिए पहले जमींदार ब्राह्मण शब्द का प्रयोग होता था । याचक ब्राह्मणों के एक दल ने विचार किया कि जमींदार तो सभी जातियों को कह सकते हैं,फिर हममें और जमीन वाली जातियों में क्या फर्क रह जाएगा । काफी विचार विमर्श के बाद "भूमिहार "शब्द अस्तित्व में आया ।" भूमिहार ब्राह्मण " शब्द के प्रचलित होने की कथा भी बहुत रोचक है । 
          भूमिहार ब्राह्मणों के इतिहास को पढने से पता चलता है कि अधिकांश समाजशास्त्रियों ने भूमिहार ब्राह्मणों को कान्यकुब्ज की शाखा माना है । भूमिहार ब्राह्मण का मूलस्थान मदारपुर है जो कानपुर - फरूखाबाद की सीमा पर बिल्हौर स्टेशन के पास है । १५२८ में बाबर ने मदारपुर पर अचानक आक्रमण कर दिया । इस भीषण युद्ध में वहाँ के ब्राह्मणों सहित सब लोग मार डाले गए ।इस हत्याकांड से किसी प्रकार अनंतराम ब्राह्मण की पत्नी बच निकली थी जो बाद में एक बालक को जन्म देकर इस लोक से चली गई ।इस बालक का नाम गर्भू तेवारी रखा गया । गर्भू तेवारी के खानदान के लोग कान्यकुब्ज प्रदेश के अनेक गाँव में बसते हैं । कालांतर में इनके वंशज उत्तर प्रदेश तथा बिहार के विभिन्न गाँवों में बस गए । गर्भू तेवारी के वंशज भूमिहार ब्रह्मण कहलाए ।इनसे वैवाहिक संपर्क रखने वाले समस्त ब्राह्मण कालांतर में भूमिहार ब्राह्मण कहलाए । 
          अंग्रेजों ने यहाँ के सामाजिक स्तर का गहन अध्ययन कर अपने गजेतिअरों एवं अन्य पुस्तकों में भूमिहारों के उपवर्गों का उल्लेख किया है । गढ़वाल काल के बाद मुसलमानों से त्रस्त भूमिहार ब्राह्मन ने जब कान्यकुब्ज क्षेत्र से पूर्व की ओर पलायन प्रारंभ किया और अपनी सुविधानुसार यत्र तत्र बस गए तो अनेक         उपवर्गों के नाम से संबोधित होने लगे यथा - ड्रोनवार ,गौतम,कान्यकुब्ज,जेथारिया आदि । अनेक कारणों,अनेक रीतियों से उपवर्गों का नामकरण किया गया ।कुछ लोगों ने अपने आदि पुरुष से अपना नामकरण किया और कुछ लोगो ने गोत्र से । कुछ का नामकरण उनके स्थान से हुआ जैसे - सोनभद्र नदी के किनारे रहने वालों का नाम सोन भरिया, सरस्वती नदी के किनारे वाले सर्वारिया,सरयू नदी के पार वाले सरयूपारी आदि । मूलडीह के नाम पर भी कुछ लोगों का नामकरण हुआ जैसे,जेथारिया,हीरापुर पण्डे,वेलौचे,मचैया पाण्डे,कुसुमि तेवरी,ब्र्हम्पुरिये ,दीक्षित ,जुझौतिया ,आदि । 
 

भूमिहार ब्राह्मण (सरयू नदी के तट पर बसने वाले )
        
        पिपरा के मिसिर ,सोहगौरा के तिवारी ,हिरापुरी पांडे, घोर्नर के तिवारी ,माम्खोर के शुक्ल,भरसी मिश्र,हस्त्गामे के पांडे,नैनीजोर के तिवारी ,गाना के मिश्र ,मचैया के पांडे,दुमतिकार तिवारी ,आदि । भूमिहार ब्राह्मन में हैं । वे ही ब्राह्मण भूमि के मालिक होने से भूमिहार कहलाने लगे और भूमिहारों को अपने में लेते हुए भूमिहार लोग पूर्व में कनौजिया से मिल जाते हैं ।
           भूमिहारों में आपसी भाईचारा और एकता होती है । भूमिहार अंतर्विवाही है और जाति में ही विवाह करते हैं । पहले वर्ष के अंत में माता काली की पूजा करना, गरीबों और शरणागतों को भोजन कराना और वस्त्र बाँटना भूमिहारों के बहुत से गाँवों में एक प्रथा थी । भूमिहार को भूमि दान में मिलती थी और स्वयं भी तलवार के दम पर भूमिहारों ने भूमि अर्जित की है। कृषि कर्म भूमिहारों का पेशा था। आज भूमिहार हर क्षेत्र में अग्रणीय हैं । ब्राह्मण होने के कारण भूमिहार स्वयं हल नहीं जोतते हैं ।

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