मंगलवार, 21 अप्रैल 2015


बुंदेली समाज బొందిలి సమాజ్ BONDILI SAMAAJ


































अन्याय के खिलाफ अकेले लड़े थे परशुराम......

  परशुराम का वास्तविक नाम राम था। लेकिन भगवान् शिव ने इनके परशु यानी की फरसा उपहार में दिया 

था..तभी से इनका नाम परशुराम हुआ.. इतिहास के अनुसार परशुराम का जन्म मध्य प्रदेश के महेश्वर जिले 

में हुआ था,जो नर्मदा नदी के तट पर स्थित है ..इनके पिता महर्षि जमदग्नि और माता का नाम देवी रेणुका 

था..देवी रेणुका को दक्षिण भारत में एलम्मा के नाम से भी जाना जाता है जबकि उत्तर भारत में शीतला माता 

के नाम से जानते है।।

उस समय महेश्वर क्षेत्र में कीर्तवीर्य सहस्त्रार्जुन का शासन था जो हैहैय क्षत्रिय वंश का शासक था और 

भगवान् दत्तात्रेय का उपासक था। भगवान् दत्तात्रेय से उसे 1 हज़ार भुजाओ का वरदान प्राप्त था।।

एक बार सहस्त्रबाहु ने महर्षि जमदग्नि के आश्रम में प्रवेश किया और महर्षि जमदग्नि की कामधेनु पर वो 


मोहित हो गया क्योंकि वो कामधेनु इंद्र द्वारा महर्षि जमदग्नि को उपहार में दी गयी थी।।वो कामधेनु सभी 

इच्छाओ को पूरा करती थी, सहस्त्रबाहु ने उसको ऋषि जमदग्नि से छीन लिया और जमदग्नि की गर्दन भी 

काट दी... लेकिन जमदग्नि सप्तऋषि थे इसीलिए भगवान् शिव की कृपा से वो पुनर्जीवित हो गए...

किन्तु पिता के अपमान और कामधेनु के अपहरण का प्रतिशोध लेने के लिए परशुराम ने अपने ही राज्य के 


राजा सहस्त्रबाहु के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और अकेले ही सहस्त्रबाहु की सेना से भीड़ गए...

परशुराम मन की गति से युद्ध लड़ रहे थे..सहस्त्रबाहु के सैनिको को पता ही नहीं चल पा रहा था की कौन कहाँ 

से मार रहा है...
इस तरह प्रजा की छाती पर पैर रखकर शासन करने वाले अत्याचारी राजाओ का परशुराम ने 21 बार नाश 

किया...

परशुराम ने अपने जीवन में भगवान् राम जैसे क्षत्रिय का सम्मान किया क्योंकि श्री राम ने अपने आचारण से 


रेणुका पुत्र का ह्रदय जीत लिया था..

परशुराम अन्याय के विरोधी थे,वो ऐसे शासन के समर्थक थे जो प्रजा के हित में हो और जिसमे प्रजा का 


शोषण न हो.... और इसीलिए उन्होंने एक भ्रष्ट शासन व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठायी थी।।

आज भी एक परशुराम की जरूरत है जो देश के भ्रष्ट नेताओ से देश को मुक्ति दिला सके

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