शनिवार, 5 मार्च 2016




बुंदेली समाज బొందిలి సమాజ్   BONDILI SAMAAJ

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धर्म क्या है ?

आइए, पहले यह देखें कि हम धर्म माने क्या समझते हैं ? सर्व साधारण परिपेक्ष्य में देखा जाए तो धर्म कुछ लोगों द्वारा अनुसरण किया गया – एक रास्ता या मान्यताओं का समुदाय है जिसमें जीवन के बारे में, मृत्यु के बारे में, जीवन के बाद के बारे में, ईश्वर के बारे में और संबंधित विषयों के बारे में कुछ निश्चित विचार या विश्वास हैं | यदि धर्म का यही अर्थ माना जाए तो वैदिक धर्म इस में नहीं गिना जा सकता |धर्म का अर्थ है स्वाभाविक गुण ( किसी भी पदार्थ का) | धर्म की अनेक वैकल्पिक व्युत्पत्तियां और अर्थ निर्धारण हो सकते हैं जिसकी चर्चा हम फिर कभी करेंगे | अगर आप चाहें तो एक ही विचार को बताने के लिए दूसरा शब्द प्रयोग कर सकते हैं, पाश्चात्य भाषाओं में धर्म शब्द की अवधारणा का नितांत अभाव है इसलिए वहां इसका अर्थ ‘ रिलीजन’ ( religion) ग्रहण किया गया है | हम भी समझने में आसान और प्रचलित होने के कारण धर्म का अर्थ बताने के लिए ‘रिलीजन’ (religion) शब्द का प्रयोग करेंगे |
यदि’ रिलीजन’ ( religion) शब्द की व्युत्पत्ति के बारे में विचार करें तो यह शब्द – re – पुनः + legion – जोड़ना या बांधना, इन दो शब्दों को मिला कर बनाया गया है | अपने मूल स्रोत से जुड़ने या बंधने की प्रक्रिया को ‘रिलीजन’ ( religion) कह सकते हैं | इस प्रकार से ‘ योग’ शब्द का जो अर्थ होता है उसके नजदीक का अर्थ धर्म माने ‘रिलीजन’ ( religion ) का हुआ |
अगर रिलीजन का अर्थ यही है तो निश्चित ही वैदिक धर्म सच्चा धर्म है, यह भी हम देखेंगे | अब हम दूसरे धर्मों के प्रवक्ताओं पर छोड़ते हैं कि वे अपने मंतव्य के अनुसार धर्म की महत्ता को कैसे समझते और समझाते हैं | हम इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे | यह लेख वैदिक धर्म को समझाने तथा उस प्रक्रिया में आप को वैदिक धर्म में दीक्षित और प्रवृत्त करने के उद्देश्य तक ही सीमित है |
वैदिक धर्म से आप क्या समझते हैं ?कुछ प्रचलित गलत जवाब –
१ वैदिक धर्म मतलब हिन्दुत्व |
२.वैदिक धर्म मतलब चारों वेदों को  दिव्य मानना |
३.चारों वेदों का अनुसरण करना व पालन करना |
४.वैदिक धर्म मतलब आर्य समाज के अनुयायी होना |
५.वैदिक धर्म मतलब संध्या – हवन करना |
और सही जवाब है –
‘ एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया में अपनी पूरी क्षमता और निष्ठा से हर क्षण असत्यता का त्याग व सत्य का ग्रहण करना ही वैदिक धर्म है | ‘
यजुर्वेद १.५ इसे बताते हुए कहता है कि –
” हे परमेश्वर, आप अपरिवर्तनीय नियमों से कार्य करने वाले हैं, जिन में किंचित भी बदल संभव नहीं है | मैं भी आप से ही प्रेरणा प्राप्त कर के अपने जीवन में दृढ़ सिद्धांतों का पालन करूं | अत: मैं निरंतर सत्य को पाने के लिए, अपने जीवन से हर क्षण असत्य को अपनी पूरी क्षमता, दृढ़ता और प्रयासों से दूर करने का संकल्प लेता हूं | मेरी इस सत्य प्रतिज्ञा में मुझे सफल करें | ”
यह संपूर्ण वैदिक धर्म का सार है | यह वैदिक धर्म का प्रारंभ है इस के अतिरिक्त बाकी सब दुय्यम है या इसी से निकला हुआ उप सिद्धांत है | इस मूल भावना के साथ व्यक्ति वैदिक धर्मी कहलाता है और यह भावना न हो तो वह वैदिक धर्मी नहीं है | ध्यान दें कि असत्य का त्याग हर मनुष्य का मूलभूत गुण है जिसके बिना हम जी नहीं सकेंगे | इसी प्रेरणा से हम जीवन में सब कुछ सीखते हैं – चलना, बोलना, शिक्षा प्राप्त करना, नए अविष्कार करना, जीवन में आगे बढ़ना इत्यादि | चाहे हम अपनी चेतना में जानते हों या नहीं, चाहे हम खुले तौर पर इसे स्वीकारें या नहीं, वस्तुत: हमारा अस्तित्व इसी वैदिक धर्म के कारण से है | धर्म का अर्थ है स्वाभाविक गुण, जो किसी पर थोपा नहीं जा सकता | वह तो सहज और स्वयंस्फूर्त होता है | अत: सत्य की चाह, हम सब का स्वाभाविक गुण है और हम इस में जीते हैं – मतलब हम सब कहीं न कहीं वैदिक धर्म को मानते हैं |
तो, वैदिक धर्म को ग्रहण करने से हमारा मतलब सिर्फ़ यह है कि जो आप करते आ रहे हैं – उसे इंकार करने से रोकना है | हम आपको, आपके भीतर मौजूद असीम ओज, तेज, उर्जा और उत्साह का अहसास कराना चाहते हैं l

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